मेरे लिए वेस्टइंडीज़ का सफर क्लास थर्ड से शुरु होता है.....हमारी हिन्दी की किताब में वेस्टइंडीज़ नाम का चैप्टर था....और हमारी मैडम ने पूछा कि क्या किसी ने वेस्टइंडीज़ का नाम सुना है ....क्लास में किसी को पता नहीं था....लेकिन मैंने हाथ उठा दिया... और बताया कि मैं जानता हूं...टीचर ने पूछा कैसे ? मैंने कहा- ये टीम क्रिकेट खेलती है ....टीचर ने कहा बिलकुल सहीं......जब मैं अपने अतीत को याद करता हूं तो पहला मैच मुझे वेस्टइंडीज़ का ही नज़र आता है ...जो मैंने टीवी पर देखा था.....बचपन में पैट्रिक पैटरसन ...गस लोगी....विवियन रिचर्ड्स उनके पोस्टर मेरे घर पर लगे थे ये सब मेरे भाई ने क्रिकेट सम्राट से निकाले थे.....२००६ में जब मैं मास कॉम कर रहा था...तो मेरी मम्मी ने मुझ से पूछा की तुम कौसने देश जाना पसंद करोगे....उस वक्त २००७ का वर्ल्ड कप वेस्टइंडीज़ में होना था ॥इसलिए मैने बिना सोचे कहा - वेस्टइंडीज़ और कहां....? खैर साल २००७ में ईएसपीएन में होने के बावजूद मैं उस पद पर नहीं था कि वेस्टइंडीज़ के दर्शन कर पाता... इसलिए सिर्फ वेस्टइंडीज़ से आने वाली खबरों को लिखता रहा....साल २०१० में मेरे लिए वो मौका लेकर कि मैं वेस्टइंडीज़ की सरज़मी पर अपने कदम रखूं ..हालांकि इस टूर से पहले मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा.....और एक वक्त तो ऐसा लगा कि मैं वेस्टइंडीज़ नहीं जा पाउंगा...पर अंदर से आवाज़ आ रही थी कि ये सपना सच होगा.....सच कहूं तो ..इस टूर ने मुझे ये यकीन दिला दिया....कि कुछ जिंदगी में कुछ चीज़ें फिक्स होती है ..और जब भगवान कुछ बड़ा देना चाहता हैं ..तो उससे पहले वो उस आदमी को तोलता जरूर है.....
वेस्टइंडीज़ का टूर भी भगवान ने मेरे लिए प्लान किया था और इसकी एक नही कई वजह है....और इसकी एक नहीं कई वजह है .....सबसे पहले ऑफिस से एप्रुवल मिलने में बहुत टाइम लगा ....हम जब पहली बार वीज़ा एप्लॉय करने गए तो डॉक्यूमेंट पूरे नहीं थे...और हमें खाली हाथ वापस आना पड़ा.....दिल बहुत निराश था ...क्योंकि अगले दो दिन वीज़ा डिपार्टमेंट की छुट्टी थी... और हमारे पास सिर्फ एक हफ्ते का वक्त बचा था.......दो दिन छुट्टी में वेस्ट हो गए और ५ दिन में य़ूके वीज़ा की उम्मीद करना बेइमानी थी ...इस दौरान हर जगह हाथ मारे ...रात-दिन वीज़ा मिलने के लिए कोशिश की कोई फायदा नहीं मिला.....लेकिन एक दिन अचानक फरिश्ते की तरह कोई आया और तीसरे दिन वीज़ा मेरे हाथ में था.....ये किसी चमत्कार से कम नहीं था क्योंकि यूके के वीजा को मिलने में कम से कम २१ दिनों का वक्त लगता है.... हमें सिर्फ ३ दिन में मिल गया......आधा काम हो चुका था.....और अब बाकी ता टिकट्स और बज़ट......उन दिनों वॉलकेनिक ऐश के वजह से ....भारत में ब्रिटेन जाने वाले कई हज़ार फंसे थे ...और लंदन का टिकट मिलना बेहद मुशकिल हो गया था... हमारी डेढ़ लाख की टिकट की कीमत साढे छ लाख हो चुकी थी....ऑफिस वाले भी घबरा गए थे क्योंकि बजट दोगुना हो चुका था ...और मेरे लिए सारे दरवाज़े बंद थे....... और उम्मीदी नाउम्मीदी में तब्दील हो रही थी.....मेरे उस वक्त शॉपिंग कर रहे थे क्योंकि उन्हे यकीन था कि हमारा टूर पक्का है ...मैंने जब उन्हे फोन पर बाताया....तो उन्हे शॉपिंग छोड़कर वापस घर लौटना पड़ा ...मैं बहुत निराश था..और सारी रात नींद नहीं आई ....सुबह उठा तो एक दोस्त से मिलना था ...मैं बाइक पर निकल पड़ा ......मेरे मोबाइल पर कॉल आ रही थी...बाइक चलाते हुए फोन आना मुझे इरिटेट करता है ....रेड लाइट पर जब रुका तो कॉल फिर आई ..मैंने फोन उठा कर देखा ..तो प्राइवेट नंबर था....मैं ने फोन पिक किया...तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई- कहां रहते हो फोन क्यों नहीं उठाते ? वो हमारे सीईओ सुधर जी का फोन था......इतमें में ट्रैफिक सिग्नल ग्रीन हो गया......और मुझे किसी तरह से बाइक को साइट लगाना पड़ा....सुधीर जी ने बताया कि ...वो मुंबई में हैं...और मुझे भेजने का प्लान कर रहे हैं...इसके बाद मेरा फोन लगातार बिजी रहा कभी एचआर ..कभी एकाउंट्स ..और कभी सुधीर जी....हमारे टिकेट्स फोन पर ही फाइनल हो गए.....आधे घंटे में मेरे लिए दुनिया बदल गई थी ......मैंने अपने कैमरामैन को फोन करके बताया कि वो शॉपिंग कर सकते हैं ..और हम जा रहै हैं......ये सुनकर उन्हे भी बहुत खुशी हुई .....वो संडे का दिन था ...अगले दिन मुझे अपना ट्रैवलर कार्ड बनाना था ..सुधीर जी बजट को देखकर हैरान थे..उन्हे लग रहा था कि वेस्टइंडिज़ जैसी जगह को देखकर ये बजट कम है....क्योकि वो वहां पहले जा चुके थे और उन्हे वहां कि मंहगाई का अंदाज़ा था......जब मैं ट्रैवलर कार्ड बनाने गया......तो हेड ऑफिस के साइन ना मिलने की वजह से पूरा दिन कट गया ..लेकिन कार्ड नहीं बन सका....मुंझे फिर से अंदेशा होने लगा कि ....कहीं कुछ गड़बड़ होने वाली है ...इसलिए मैं शॉपिंग करने से भी डर रहा था ...खैर अगले दिन कार्ड भी बन गाया और हम जाने को तैयार थे ..मुझे शॉपिंग करने का बहुत कम वक्त मिला ...लेकिन मैं सिर्फ ये सोच रहा था ...कि इंडीज़ के इम्तिहन को हर हाल में पास करना है ....28 मई को एमिरेट्स की फ्लाइट से हमने ....वेस्टइंडीज़ के लिए कूच करा......
बुधवार, 30 जून 2010
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