IBN7 की स्पोर्ट्स डेस्क पर बैठे ..एक इंटर्न ने मुझसे पूछा कि ...सर आप क्या पहले से ही रिपोर्टर बनना चाहते थे.....मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या जवाब दूं..फिर भी मैंने ... हां कहते हुए सिर हिला दिया......तो उसका अगला सवाल था ..कि आपने कब इसके बारे में सोचा .....उसका ये सवाल सुनते ही मैंने अपने होंठ दबा लिए ..और मैं सीधे ...अपने बचपन में पहुंच गया.....मेरी बड़ी दीदी ने मेरा नाम रवीश इसलिए रखा ..क्योंकि .....जब स्कॉवड्रन लीडर राकेश शर्मा चांद पर गए थे..तो उस मिशन के विंग कमांडर रवीश मलहोत्रा थे ...क्योंकि राकेश मेरे बड़े भाई का नाम था ..इसलिए मेरा नाम रवीश रख दिया गया....और मुझे बचपन से ही ये बताया गया कि जब कोई पूछे कि क्या बनना है ..तो मुझे कहना है SUADOURN LEADER .....हांलाकिं मुझे तो पता भी नहीं था कि ये होता क्या है ....फिर भी घर पर मेहमान आते और मेरा जवाब यही होता ....थोड़ा बड़ा होने पर मेरा इंटरेस्ट क्रिकेट की तरफ बड़ गया .....पापा से बैट लाने को जिद की ..तो अगले दिन वो बैट ले आए और कहने लगे कि तू डेविड बून है........ मैंने सोचा कि सचिन के बाद ..अगला नाम मेरा ही होगा ....पड़ोस में दो-तीन लोगों ने मेरे खेल की तारीफ भी कर दी..बस क्या था ...मुझे तो लगा कि ..मेरा जन्म ही क्रिकेट के लिए हुआ है.......हमने अपनी टीम बना ली ..बैट मेरा था तो कप्तान भी मैं बन गया....अब हर संडे को दूसरे मोहल्ले की टीम से मैच होता .....जल्द ही मुझे समझ आने लगा ..कि क्रिकेट मेरे बस की बात नहीं.....लेकिन हां पड़ोस के अंकल ने मुझे कॉमेंट्री करते हुए सुना और कहा - तू कॉमेन्टेटर बनेगा ...
इसके बाद जी...लॉन टेनिस की धुन सवार हो गई ..बोरिस बेकर ने विंबल्डन जीता .....और मुझ पर उसका जूनुन सवार हो गया.....फिर आंद्रे अगासी ..जिम कूरियर ..पीट सैम्प्रास.,..मेरे सपने में आने लगे......बैडमिटन के रैकेट से ही मैं टेनिस खेलने लगा..जब मेरी दीदी ने देखा कि मैने रैकेट खराब कर दिया है ..तो उन्होंने ...रैकेंट ही छुपा दिया.....कई दिनों तक ढूंडा लेकिन नहीं मिला ...तो मैंने सोचा छोड़ों ..कुछ नया करते हैं .....
1994 फुटबॉल वर्ल्ड कप शुरु हो गया.....और मोहल्ले के बड़े भाई लोग फुटबॉल की बातें करते थे ..अमर उजाला में फुटबॉलर्स की फोटो छपती थी....रोमारियो..बौजियो....सिलाइची..ना जाने क्या क्या....
और अब मैं भी पूरी तरह से ठान चुका था कि ...मुझे मैराडोना बनना है..पापा फुटबॉल ले आए....खेल शुरु हुआ ....हमारे घर में एक गैलरी थी...और उसकी दीवारों का सारा सीमेंट मैनें फुटबॉल मार-मार का निकाल दिया था ...उसके बाद मेरे घर वालों ने मेरी धुनाई करके ..मेरे फुटबॉलर होने का सारा भूत भी निकाल दिया.....
अब मैं क्या करता .....घर में टीवी देखता था .....दुरदर्शन पर परमवीर चक्र दोबारा शुरु हुआ ..बहुत जोश आया.....मन किया बड़ा होकर फौजी बनना है ...मेरे मामा भी कर्नल थे....वो तो मेरे हीरो हो गए....किताब में अब्दुल हमीद का चैपटर पढ़ा तो बस देशभक्ती का क्रेज हो गया........एक दिन मम्मी के साथ आर्मी कैंटिन गया...
वहां एक लियो की टॉय गन रखी थी ...गन बहुत बड़ी थी ....लेकिन बिलकुल असली थी .....मैंने मम्मी से कहा मुझे ये चाहिए ...मंहगी होने की वजह से मम्मी ने मना कर दिया.....मैं रोता रहा ...फिर मेरे मामा आए ..और उन्होने वो गन खरीदकर मुझे दे दी.....मैं सोता भी उसी गन के साथ था ..और स्कूल के बाद उसी के साथ खेलता.....स्कूल में भी कोई पूछता कि क्या बनोगे तो मेरा जवाब लेफिट्नेंट ही होता....
देखते देखते मेरे पापा के मार्गदर्शन में मेरा जनरल नॉलेज बहुत तेज हो गया....मैं स्कूल की क्विज को टॉप करने लगा...प्रिंसिपल ने स्टेज पर बुलाकर मुझे ईनाम दिया..और कंधे पर हाथ रखकर कहा ..आईएस बनेगा !......यानी एक और नया करियर ...इस दौरान प्राइम स्पोर्टस नाम से स्पोर्टस चैनल आ चुका था ..और उसमें हम लोग चारू शर्मा को माइक लेकर ...बोलते हुए देखते थे....मैंने भी अखबार और कागज से वैसा ही माइक बनाया....और उसे अपनी स्टडी टेबल के पास रखा करता था ..जैसे ही पठाई के बीच में कोई नहीं होता था ..मैं उसे हाथ में लेकर कॉमेंट्री करता था....लेकिन फिर भी दिमाग मे था कि आईएएस बनना है ....एक दिन हमारे उतराखंड की मंत्री इंदिरा ह्रदेश से मुलाकात हुई ..वो मेरी मम्मी को जानती थी..तो मझसे पूछा कि क्या बनोगे ..मैंने तपाक से जवाब दिया आईएएस .....वो चौंक गई ...बोली तुम जानते हो आईएएस क्या होता है...इसके लिए बहुत मेहनत करनी होती है ...मैंने दिल में सोचा पागल है ये ..मेरे बारे में कुछ नहीं जानती.....जब बन जाउंगा तब पता लगेगा......खैर वो तो चली गई लेकिन इस दौरान मुझे साइंस में इंटरेस्ट आने लगा .....मेरे सभी भाई-बहन सांस स्टूडेंट थे ..इसलिए घर में साइंस का माहौल था....फिजिक्स पढ़कर मुझे लगा कि साइंटिस्ट बनना क्या बुरा है....फिर उन दिनों आईआईटी वाले लोग आईएस बन रहे थे...तो लगा पहले इंजिनियरिंग ..फिर आइएएस..क्या आईडिया था.....12वीं खत्म हुई इंजिनिरिंग की कोचिंग शुरु.....पहले दो महीने बाद लग गया....नहीं यार ..मुझे नहीं करनी ...इंजिनियरिंग ....ङर वाले 50 हजार के करीब फीस भर चुके थे ..इसलिए कोचिंग चलती रही ..लेकिन दिल कही और था....खैर जगह-जगह काउंसलिंग के लिए गया.....लेकिन उतराखंड के पहाड़ों में बसे कॉलेजों से मैने तौबा कर ली.....और साफ-साफ कह दिया ..कि मुझे इंजिनियर नहीं बनना .....मुझे खबी भी पहाड़ों में जिंदगी बिताना पसंद नहीं था ...इसलिए मम्मी से कहा कि आपने जो पैसे कोचिंग में खर्च किए हैं वो वापस कर दूंगा.....इसके बाद मैंने कॉलेज में एडमिशन ले लिया....कॉलेड में एडमिशन के दौरान पहला साल तो ऐसे ही गुजर गया....अब कोई पूछता कि क्या बनना है ..तो मैं कहता पहले बीएसी कर लूं फिर सोचूंगा....सच कहं मैं उस दौरान लोगों से कतराने लगा था ....क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई सवाल नहीं होता था ...और मेरे पास कोई जवाब नही था...फर्स्ट ईयर तो ऐसे ही गुजर गया..सेकेंड ईयर में मैंने..फिर से क्विज ....भाषण ..जनरल नॉलेज शुरु कर दिया.....मैं मिमिकरी अच्छी करता था ..इसलिए कॉलेज में नाटक में भाग लेना का मुझे ..चांस मिल गया.,....अब मैं खुद नाटक लिखता ..और उसमें एक्ट भी करता.....कभी डॉक्टर बनता ..तो कभी गांधी जी.....अब दिन कट रहे थे.....लेकिन लक्ष्य का पता नही था....
मेरे पापा कि बहुत तमन्ना था कि मैं फौज में जाऊं ..उनका कहना था ...कि इसमें ट्रेनिंग के दौरान भी तनख्वाह मिलती है ..और ऑफिसर की लाइफ बेस्ट है......मैंने CDS का एक्जॉम दिया.....और क्वालिफाइ भी कर लिया....लेकिन फिर भी दिल कह रहा था...कि अगर फौज में जांगा ..तो मुझे कौन जानेगा....भगवान ने सुन ली ..और मैं फाइनल राउंड में बाहर हो गय़ा....पापा बहुत निराश हुए......लेकिन मुझे अब समझ में आ रहा था.....कि क्या करना है.... कॉलेज के नाटक में मैं रिपोर्टर बना.....और लोगों ने उसकी बहुत तारीफ की ...सबने कहा तुम रिपोर्टर बनो......मैंने गढवाल यूनिवर्सि का फॉर्म भरा ..हजारों स्टूडेंट्स में से मुझे तीसरा स्थान मिला...अब घर छोड़ने का वक्त आ गया.....लेकिन फिर वही चक्कर पहाड़ में कॉलेज था .और मुझे वहां नहीं रहना था ...मैंने फिर मना कर दिया.....अगले साल आईएमएमसी और भारतीय विघा भवन..और जामिया का फॉर्म लाया...लेकिन किस्मत ले गई....भारतीय विघा भवन....पापा ने रिजल्ट देखा ..फिर कुछ देर सोचा ..और बोले ...क्या बनेगा तू ? मैंने कहा रिपोर्टर......पापा बोले-- ठीक है तू यही बन ..लेकिन हां ...ये सोच ले ..कि तुझे नंबर वन बनना है ....आज मैं रिपोर्टर तो बन गया....और टीवी में देखने के बाद मेरे पापा को यही लगता कि ....अगर मैं रिपोर्टर बन सकता हूं ..तो कोई भी बन सकता है ....
मंगलवार, 11 जनवरी 2011
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